रमा के हाथ से मोबाइल नीचे गिर पड़ा और वो दीवार से चिपक के सुबकने लगी। दिल तो ज़ोर - ज़ोर से रोने को चाह रहा था पर रमा अपनी सिसकियों को रोकने की भरपूर कोशिश में थी । अपने हथेलियों से मुँह को दबा रखा था, पर आँखें तो निरंतर बरसात किए जा रही थी। कल ही तो भैया दिल्ली से बाइपास सर्जरी करवा कर घर लौटे है । घर में सब यूँ ही भैया की तबीयत को लेकर परेशान है और इस हालत में अपने जज़बात को दबाने की पूरी कोशिश रमा कर रही थी।
रमा 35 की हो चुकी थी पर अभी तक उसकी शादी नहीं हुई थी । उससे छोटी दो और बहनें है - उमा और जया। दोनों अपने ससुराल में पति और बच्चों के साथ सुखमय जीवन गुजार रही हैं । रमा का जन्म ही एक विकार के साथ हुआ जो उसकी जिंदगी का ग्रहण बन गया। रमा का एक पैर दूसरे पैर से २ इंच छोटा था पर रमा खेलना , कूदना, सीढियाँ चढ़ना सब कर पाती थी और वो अपने इस विकार साथ खुश थी ।
जब रमा 16 की हुई तो उसके भैया को किसी ने बताया की ऑपरेशन से रमा का पैर बिलकुल ठीक हो जाएगा । रमा को भी जब ये बात पता चली वो काफी खुश हो गई, कई सपने उसके आँखों के आगे नाचने-झुमने लगे । इंटर का पेपर देने के बाद रमा का पैर का ऑपरेशन हुआ, एक साल पूरी तरह से उसके बिस्तर पर निकल गए । रमा बहुत खुश थी की अब मैं भी आम लड़कियों की तरह हो जाऊँगी । पर विधाता तो जैसे रमा को उसके विकार के साथ ही देखना चाहते हो , रमा का पैर पहले २ इंच छोटा बड़ा था जो अब ऑपरेशन के बाद १/२ इंच कम ही रह गया और तकलीफ़े पहले से न जाने कितने गुना ज्यादा बढ़ गई ।
अब रमा दवाइयों के कारण थोड़ी मोटी भी हो गई पहले जैसे भाग-दौड़ भी नही कर पाने लगी । मुश्किलें पहले से ज्यादा बढ़ गई। फिर भी उसने खुद को संभाला और आगे अपने पढ़ाई को पूरा करने का फैसला किया । अब वापस से रामा अपने पढ़ाई में लग गई। इसी बीच उसकी दोनों छोटी बहनों की शादी भी हो गई , पर रमा सरकारी नौकरी पाने के लिए तैयारी में जुट गई और इस कारण पटना चली गई।
यही वो दौर था जब थोड़ी खुशियों के बौछार रमा के दामन में भी आए । 'विजय' नाम था उसका, जो रमा के सूने जीवन में बहार बन कर आया था , अब रमा को भी विजय का साथ अच्छा लगने लगा था । विजय रमा की हर छोटी से छोटी बातों का ध्यान रखता था । धीरे-धीरे रमा ने विजय को अपना सबकुछ मान लिया था । विजय ने रमा को भरोसा दिलाया की "मुझे तुम्हारे इस विकार से कोई फर्क नही पड़ता, मैं तुमसे तुम्हारे इस विकार के साथ प्यार करता हूँ , और मैं तुम्हें अपनी पत्नी बनाना चाहता हूँ ।" रमा को मानो पंख लग आए हो और वो बस अपने इन पंखो के सहारे अपने सपनों के आसमान में स्वछ्न्द उड़ना चाह रही थी । विजय ने रमा से वादा किया कि जैसे ही मेरी नौकरी लगेगी मै अपने माता - पिता से हमारे रिश्ते कि बात करूँगा ।
आज विजय हाथ में मिठाई का डब्बा लिए रमा के पास पहुँच गया । " खट - खट, खट - खट, खट - खट" , "अरे बाबा आ रही हूँ, अब दरवाजा ही तोड़ दोगे क्या "कहती हुई जैसे ही रमा ने दरवाजा खोला, विजय ने उसे अपने बाहों मे भर लिया । " रमा - रमा, ओ मेरी प्यारी रमा, मेरी नौकरी लग गई, रेलवे में ASM का पोस्ट है। ओ मेरी रमा, आज मैं बहुत खुश हूँ । " इतना कहते हुए विजय ने मिठाई का टुकड़ा रमा के मुँह में भर दिया । आज रमा भी बहुत खुश थी । विजय और रमा इतने खुश थे कि सारी पाबन्दियों को भूलते हुए एक दूसरे में समाने से खुद को रोक न पाए, और विजय के प्यार के उस तूफान में रमा खुद को बहने से न बचा पाई क्योंकि वो खुद भी इस समंदर में डूब जाना चाहती थी ।
दोनों एक दूजे के बांहों में लिपटे सो गए । तभी रमा के मोबाइल कि आवाज ने उसके नींद को तोड़ दिया, रमा ने मोबाइल देखा ' अरे ! भाभी का फोन ! ' "हाँ ! हेलो ! भाभी " रमा हड्बड़ाई आवाज में बोली । दूसरी तरफ से भाभी के रोने कि आवाज आ रही थी , और रोते हुए भाभी ने कहा "रमा , तेरे भैया को दिल का दौरा आया है, तुम आज ही घर आ जाओ, हमें तुम्हारे भैया का बाइपास सर्जरी के लिए दिल्ली जाना होगा, घर पर बच्चे अकेले है, तुम आ जाओ बच्चों का ख्याल रखने" । "ठीक है भाभी, आज ही मैं निकलती हूँ,। " कह कर रमा ने फोन काट दिया । उसने विजय को बताया कि मुझे आज ही घर जाना होगा भैया कि तबीयत खराब है । विजय ने उसे दिलासा दिया कि, तुम आराम से जाओ , मैं, हमारे रिश्ते के बारे में अपने माता-पिता को बता कर शादी के लिए राजी कर लूँगा । तुम भी जब भैया ठीक हो जाएगे तो घर में बता देना , तब तक के लिए मेरा हर प्यार हर एक पल के लिए तुम्हारे साथ ही तो है ।
रमा घर आ गई । भैया का ऑपरेशन भी सफल रहा । रमा घर और बच्चों कि भी ज़िम्मेदारी अच्छे से संभाल रही थी । आज वो अपने और विजय के बारे में भैया को बताना ही चाह रही थी कि उसका फोन बज उठा । विजय का ही फोन था , वो खुशी से फोन उठा के बोली " अरे विजय ! कहाँ थे इतने दिनों से, तुम्हारा फोन ही नही लग रहा था । मैं भैया से हमारे बारे में बात करना चाह रही थी । "रमा" , विजय ने कहा , " सुनो तो सही मेरी बात , मेरी शादी हो गई, मेरे माता-पिता के पसंद कि लड़की से । मेरे माता - पिता हमारे रिश्ते के लिए राजी नहीं हुए वो तुम्हारे इस विकार को स्वीकार नही कर सके , और मैं मेरे माता - पिता के विरुद्ध नही जा सका ।" "रमा , हम अब भी पहले कि तरह मिल सकते है, सबकुछ वैसा ही रहेगा । "
रमा के तो पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक गई और आंखो में आँसुओ का सैलाब उमड़ गया , उसके हाथ से फोन नीचे गिर पड़ा, और उसका 'विकार' उसके सामने खड़ा था ।
----- नीतू कुमारी ✍️