कल-कल करता स्वर सरिता,
टप-टप बूंदे बारिश की,
धीर-अधीर करता यह सावन,
जैसे हो कोई साजिश बारिश की।
ताल, झरने, झील, सरिता,
हैं आगोश बारिश की,
मानव पशु पक्षी सारे
झेल रहे साजिश बारिश की।
चांद-चकोर, तोता-मोर, पपीहा-कोयल,
बोले सब एक ही बोल,
एक दूजे से मिलन की बेला आई है,
जिस की साजिश बारिश ने रचाई है।
मन व्याकुल, तन व्याकुल,
व्याकुल धरा का प्यार,
देख सावन की बूंदों को
तृप्त हुआ संसार ।
----- नीतू कुमारी ✍️
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