Thursday, June 18, 2020

कंचन



कंचन था नाम उसका 
जो हर सुबह
मेरी गलियों से 
गुजरा करती थी, 
हाथों में किताब
और आंखों में सपने
लिए घुमा करती थी,
हौसला था उसका कुछ
कर गुजरने का ,
पंख लगा ऊंची
उड़ान भरने का।
कच्ची उम्र में, 
उसके हौसलों को 
अपनों ने ही तोड़ दिया,
एक अधेड़ उम्र के
पुरुष  से उसका 
रिश्ता जोड़ दिया,
बहुत चिल्लाई, 
बहुत गिड़गिड़ाई, 
हाथ भी अपने जोड़ लिए ,
पर निष्ठुर थे 
वो मां-बाप जो 
बेटी को बोझ कह,
उसका पूर्ण जीवन
एक अधेड़ के 
साथ झोक दिए।
वह शहनाई की
गूंज नहीं थी ,
वो तो था 
एक शंखनाद 
उसके नई जिंदगी
की लड़ाई का ,
पीछे छूट गया सपना
कंचन के पढ़ाई लिखाई का,
अब तो बस हर रात 
कंचन काया तोड़ी जाती,
बिस्तर पर हर रात
कंचन की आत्मा निचोड़ी जाती ।
14 की उम्र में 
गर्भधारण उसने कर लिया,
खुद की कोमल काया में 
एक नन्हे जीवन 
का भार  सह लिया ,
फिर आई प्रसव पीड़ा की रात 
पर इस पीड़ा को 
वह ना झेल पाई, 
आंखों में सपने लिए 
कंचन  कुछ ना बोल पाई,
मौन हो गई सदा के लिए वो
और मौन हो गए उसके सपने
काश उसके मां-बाप 
हो पाते उसके अपने।
कंचन था नाम उसका 
जो हर सुबह
मेरी गलियों से 
गुजरा करती थी, 
हाथों में किताब
और आंखों में सपने
लिए घुमा करती थी,
बस सपने लिए घुमा करती थी... 
बस कुछ बेमाने सपने .....

                      ----- नीतु कुमारी✍️

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