सहमी-सहमी सी रहती थी
वह देख खुद की परछाई,
बालपन में घटी जो घटना
उसमें नहीं थी कुछ अच्छाई,
तब दुनियादारी कि भी
उसे कहां समझ थी आई।
वह तो थी मात्र सात बरस की,
एक निश्चल, निर्मल कन्या,
मां जगदंबा सा रूप था
नाम था उसका तान्या,
मां बाबा की लाडली थी
और भैया की वो बहना प्यारी,
कभी इठलाती, कभी इतराती
बिल्कुल थी वह बावरी।
एक दिन उसके बाबा का
एक दोस्त घर आया,
तान्या के लिए भी
वह चॉकलेट टॉफी लाया,
देख कर टॉफी
तान्या का जी ललचाया,
टॉफी लेते वक्त वो
थोड़ा सा घबरा गई ,
पर अपना बाबा जैसा समझ
दोस्त अंकल के गोद में आ गई ।
तान्या को छूते ही
उस अंकल के मन में पाप समाया ,
बिठाकर अपनी गोद में
उसके कई अंगों को दबाया,
"उफ्फ- उफ्फ दर्द हो रहा है अंकल "
यह कह वह बच्ची वहां से भाग गई ,
बता न सकी किसी को इसके बारे में
क्योंकि वो पूर्णतः घबरा गई।
पर पाप उस पापी के मन में
घुस चुका था इस कदर,
कि अब वह उस बच्ची को
भोगना चाहता था हर पहर,
एक दिन मौका पाकर
वह उसके घर आया,
तान्या को अकेला खेलता देख
उसके मुंह को कसकर
अपनी हथेलियों से दबाया।
लगा रोंदने उसके तन को
जैसे कोई नरभक्षी,
वह फड़फड़ाती रही
खुद को बचाने के लिए
मानो हो एक कैद पक्षी
तभी तान्या के हाथ में
एक फूलदान आया ,
दिया मार उसके सर पर,
और ख़ुद को उसके
चंगुल से छुड़ाया।
लहूलुहान हो चुका था सर
उस पापी नर पिशाच का,
पर बहुत से सवाल
खड़े कर चुका था
वह इस समाज का,
क्या ? नारी का हर रूप
सिर्फ भोग मात्र है,
उम्र की कोई सीमा नहीं
वह तो केवल पुरुषों के तन की
अग्न मिटाने के पात्र हैं।
आज तान्या का
रोम-रोम सिहर रहा,
देखकर अपनी ही परछाई
उसका आत्मा डर रहा,
इतनी छोटी सी उम्र में
ये क्या घटना उसके साथ घट गई,
क्या इंसानियत इस दुनिया से मर गई।
एहसास - ए - दिल
✍️नीतू कुमारी🙏
🤔
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