Wednesday, June 3, 2020

अजन्मा


हे मां!  क्या वह इंसान थे या
इंसान के चेहरे में कोई हैवान थे,
क्या मिला उसे तेरी जीवा जलाकर ,
विस्फोटक वाला तुझे अनानास खिलाकर ,
तू तो मेरे लिए शहर में आई थी,
मेरी भूख मिटाने के लिए तू
वह विस्फोटक अनानास खाई थी,
भटकती रही सारा दिन तू उस शहर में,
क्योंकि मैं तो तेरे अंदर था तेरे गर्भ में ,
जली हुई जीवा से एक निवाला भी तू न खा सकी,
भूखी तड़पती हुई वेल्लियार नदी तक तू आ पहुंची,
खड़ी रही उस नदी में और देह को तूने त्याग दिया,
एक मां और उसके अजन्मे बच्चे को
हे ! मानव तूने मार दिया ।
अब जो प्रकृति तेरा विनाश करें
तो तू भी ना हाहाकार  मचा,
निर्मम प्राणियों की हत्या कर
यूं ना तू अहंकार दिखा ,
ले डूबेगा अहंकार तेरा ही तुझे इस संसार में ,
कभी करोना ,कभी उल्का, कभी भूकंप और कभी तूफान में ,
तेरा विनाश भी पक्का है,
हे मानव ! इस निर्मोही संसार में।
                               ----- नीतू कुमारी  ✍️

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