Sunday, May 17, 2020

मजदूर था वो....

मजबूर था वो, क्योंकि मजदूर था वो,
बेबस था वो, लाचार था वो,
अपने हालत का शिकार  था वो,
बस मजबूर था वो, क्योंकि मजदूर था वो।।

थी जद्दोज़ेहद उसे  ....
दो वक़्त की रोटी कमाने की,
बूढ़े माँ-बाप का सहारा बनने की,
बहन के हाथों में मेहँदी रचाने की,
अपने बच्चों के भविष्य को सवारने की।।

थी मजबूरियाँ उसकी इस कदर,
की जा पहुँचा अपने गाँव से मीलों दूर,
उस अजनबी सपनों के शहर,
जहाँ जगमगाती थी उम्मीदें ,
और चमचमातें थे सपने,
भले उससे दूर हो उसके अपने।।

अचानक वक़्त का पहियाँ घुमा,
सबकुछ एक पल में थम सा गया,
जो कल तक जगमगा रहे थे शहर,
आज वही सन्नाटा सा पसर गया।।

एक बार फिर  ....
वो मजदूर था, जो आज वापस से मजबूर हो गया,
अब सपनों के उस शहर में ,
जीना उसका मुहाल हो गया,
वापस से अपने गाँव लौटने को,
मजदूर बेहाल हो गया।।

जो भीड़ कल तक गाँव से शहर की ओर आती  ,
आज वो शहर से गाँव  हो गया,
कोई पैदल तो ,कोई साईकिल पर ही सवार हो गया,
कई तो कफ़न में लिपट कर पहुँचे अपने गाँव ,
आज उसका पूरा परिवार ही कंगाल हो गया।।

क्योंकि मजदूर था वो, बस मजबूर था वो ,
हाँ बस मजबूर था वो, क्योंकि मजदूर था वो !!

                                     ----- नीतू कुमारी  ✍️

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