Thursday, May 7, 2020

मैं औरत हूँ


मैं औरत हूँ......,  हाँ  मैं एक औरत हूँ ,

मैं बेटी हूँ , कोई अभिशाप नहीं
मैं बहन हूँ, कोई  संताप नहीं
मैं पत्नी हूँ, कोई पाप  नहीं
मैं एक माँ भी हूँ, कोई अनुताप  नहीं ।

औरत हूँ, पर लाचार नहीं,
कोमल हूँ, पर कमजोर नहीं,
मैं दुर्गा,  तो मैं ही काली हूँ,
मैं खुद में , खुद के लिए काफी हूँ।

नदियां भी मैं हूँ, सागर भी मैं हूँ,
आब भी मैं हूँ, और आग भी मैं हूँ ,
जरूरत नहीं मुझे किसी सहारे की,
जरूरत नही मुझे किसी किनारे की।

क्या समझ रखा है मुझे जमाने ने,
बस एक जाम , जो भरा है आपके पैमाने में,
दिल किया तो होठों  से लगा लिया ,
वरना  ठोकर मार दिया भरे मैखाने  में ।

मैं बेटी हूँ , मैं बहन हूँ,
प्रेमिका भी मैं हूँ, और पत्नी भी मैं ही हूँ,
मैं बहू किसी की, और माँ भी मैं ही हूँ,
पर सबसे पहले मैं एक औरत हूँ।

मैं औरत हूँ......,  हाँ  मैं एक औरत हूँ । ।
                                     ----- नीतू कुमारी  ✍️





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