मां बनने का एहसास,
होता है बहुत खास,
वह मन में उठती बेचैनियां,
शरीर में होती परेशानियां,
कभी चाह खाने का खट्टा,
तो कभी चाह खाने का मिट्ठा,
अपनों से उम्मीद भरी नजरें,
पर अपनों के कई नखरे।
मन हो जाता है तब खिन्न,
जब समझते हमें भिन्न,
अपने अंदर एक
जीव को भी पालना,
और साथ ही साथ
पूरे परिवार को संभालना,
समय के साथ एक-एक
दिन मुश्किल लगता है,
बैठना, चलना , सोना, खाना
सब कुछ भारी लगता है।
पर खुद की परेशानियों
को भूल जाओ,
खुद की तकलीफों
को ना बतलाओ,
क्योंकि तुमसे भी
ज्यादा बाकी बीमार हैं,
तुम्हें क्या हुआ है
तुम हाथ पैर से
थोड़ी ना लाचार है।
चाहे महीना आठवां चढ़े
या चढ़े महीना नवां,
फर्क किसी को पड़ता नहीं,
सुबह-शाम फरमाइश
किसी का रुकता नहीं,
जब कोई दिल का
हाल नहीं समझता,
तो दिल बहुत
जोर से है दुखता।
पर दिल को दे लेते हैं दिलासा,
अब छोटे मेहमान के
आने की है जो आशा,
खुद को खुश रखना
भी है जरूरी,
क्योंकि मां बनना
चाहत है हर नारी की,
ना की एक मजबूरी।
------ नीतू कुमारी✍️
No comments:
Post a Comment
आपके सुझाव सादर आमंत्रित 🙏