Sunday, April 12, 2020

फैसला होना ही था

ज़िंदगी में मुश्किलों का सामना होना ही था,
ख्वाब हम चाहें न चाहें फासला होना ही था।


बेबसी तेरी या मेरी फर्क क्या पड़ता है जब,
दोनों में से एक को बेवफा होना ही था।


ज़िंदगी के कुछ हसीन लम्हों में हम तुम साथ थे,
एक न एक दिन खत्म इसका सिलसिला होना ही था।


कब छुपा है इश्क़ दुनिया में किसी तदबीर से,
हर किसी को इससे एक दिन आशना होना ही था।


ज़िंदगी नकामयाबी जब देखी न थी,
कर दिखाने का नया कुछ हौसला होना ही था ।


मैंने तुमको दी नहीं अपनी सफाई सोच कर,
कौन मुजरिम है ये एक दिन फैसला होना ही था ।

                                        ----- नीतू कुमारी  ✍️



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