बंद पलकों के आगोश तले सपने सजाते थे कभी,
अब तो खुले आंखो से ही ख़्वाब देखने लगे।
सजना तो हमें आता ही नहीं था कभी,
पर आप से मिल कर सजने लगे।
देख कर खुद के अक्श को आईने में,
अब शरमाने लगे हैं हम।
चाहा जो आप को हमने ,
खुद को भूलने लगे हैं हम।
खुद को भूल कर खो जाना चाहती हूँ आपमें,
पर कमबख़्त फासलें दरमियाँ हैं हमारे।
मिट जाए ये दूरियाँ, ये फासलें, इल्तिजा हैं रब से,
फिर डूब जाए एक दूजे में कहीं दूर सब से।
प्यार भरे उन प्यारे लम्हों का
इंतज़ार कर रही हूँ,
इंतज़ार, इंतज़ार ही न रह जाए
इस बात से डर रही हूँ ।
इस ज़िंदगानी की अब हर कहानी हो आपके संग,
जिसमें मिल कर भरे हम अपने प्यार के रंग।
चाहत ये मेरी रह न जाए अधूरी,
इसे हकीकत बनाने के लिए आपकी चाहत है जरूरी ।
----- नीतू कुमारी ✍️
👍
ReplyDelete