जब भी कोई निर्भया,
प्रियंका और मनीषा बनती है,
तब ही सड़कों पर हर एक के हाथ में
मोमबत्ती क्यों जलती है,
जलती क्यों नहीं ?
हर एक के सिने में ज्वाला
जब सड़कों पर कोई निगाह
किसी भी आती जाती लड़की को घूरती है।
झगड़ा भले हम आपस में ही करें
या फिर किया हो
किसी ने भी कोई भी अपराध,
चाहे चोरी, डकैती, हत्या या बलात्कार,
पर गालियाँ हमेशा हर एक की जुबां से
माँ-बहन-बेटी की ही निकलती हैं ,
अपशब्द बोलकर भी अस्मत
इनकी ही लूटी जाती है ।
क्यों, नहीं ? हम अपने आचरण,
विचार, और व्यवहार में
भी थोड़ा संस्कार लाए,
हर वक़्त बेटियों को ही नही
बेटों को भी इज्जत और
आदर करना सिखाए ।
यदि दो-चार संस्कार ,
हम अपने बेटों के भी
DNA में डाल दे,
नज़रों की हया थोड़ी सी
अपने बेटों को भी सीखा दें ,
तो शायद कोई दूसरी
मनीषा की जुबां नहीं कटेगी,
कोई प्रियंका जिंदा नही जलेगी,
और शायद किसी की
बेटी निर्भया नहीं मरेगी ।
------ नीतू कुमारी